उत्तराखंड में सीधी भर्ती और पदोन्नत पीसीएस अफसरों के बीच वरिष्ठता को लेकर विवाद और गहरा गया है। हाल ही में, सीधी भर्ती के दो पीसीएस अफसरों की एडीएम (उप जिला मजिस्ट्रेट) पद पर तैनाती अटकने के बाद, वह विरोध में उतर आए हैं। उनका कहना है कि जिन समयावधि को लेकर पदोन्नत पीसीएस अफसर खुद को वरिष्ठ बता रहे हैं, वह अस्थायी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट भी अपने आदेश में जोड़ने से मना कर चुका है।
मामला तब तूल पकड़ता है, जब प्रदेश के 2012 बैच के पीसीएस अफसरों के बीच वरिष्ठता को लेकर मतभेद गहराते हैं। इन 19 अफसरों ने 2014 में ज्वाइन किया था, जबकि 25 अफसरों ने 2016 में नायब तहसीलदार से एसडीएम पद पर पदोन्नति पाई थी। यह अफसर 2012 से तदर्थ पीसीएस के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे और उनका कहना है कि वह 2014 में आए सीधी भर्ती के अफसरों से सीनियर हैं, क्योंकि उन्होंने 2012 से एसडीएम के पद पर कार्यभार संभाला था।
विवाद और बढ़ा जब सरकार ने सीधी भर्ती से योगेंद्र सिंह और जयवर्धन शर्मा को एडीएम पद पर तैनाती का आदेश दिया। पदोन्नत पीसीएस अफसरों ने इस आदेश का विरोध किया और उनकी तैनाती की प्रक्रिया रुक गई। पदोन्नत अफसरों का तर्क है कि उन्हें भी एडीएम पद मिलना चाहिए, क्योंकि वे सीधी भर्ती के अफसरों से वरिष्ठ हैं। वहीं, सीधी भर्ती के अफसरों का कहना है कि 2012 से तदर्थ पदों पर कार्यरत रहने के बाद 2016 में उन्हें पूर्ण पदोन्नति मिली थी, और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, अस्थायी व्यवस्था को वरिष्ठता में नहीं जोड़ा जा सकता।
सीधी भर्ती के अफसरों का कहना है कि पदोन्नति के आधार पर उन्हें 6600 ग्रेड-पे 31 अक्टूबर 2019 को मिला था, जबकि बाद में 2022 में ही अन्य अफसरों को यह ग्रेड-पे मिला। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के 14 फरवरी 2020 के आदेश के बाद यह तय हुआ था कि स्थानांतरण को वरिष्ठता में नहीं जोड़ा जा सकता, जिसके बावजूद शासन ने 31 अक्टूबर 2019 के आदेश को बरकरार रखा है।
इस विवाद का असर आगे आईएएस के पद पर होने वाली पदोन्नतियों पर भी पड़ सकता है, यदि इस मामले में कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया गया तो।